मैने निजी तौर पर अनुभव किया हैअधिकतर पंडित ज्योतिषी व
विद्वजनो का गुरू खराब होता है व केतु भी अपनी उम्र में खराब
(निकम्मी औलाद) होता हुआ देखा है, जिसका कारण
ईर्षा निन्दा चुगली बेवजह वाद-विवाद, एक दुसरे को नीचा दिखाने कोशिश,
ज्ञान के साथ अंहकार आ जाना स्वभाविक है पर जहाँ तक हो सके
कोशिश करना चाहिये कि इन बातों से परहेज करें -
प्रतिष्ठा शूकरी विष्टा होती है.....
" निंदा भली किसे की नाही मनमुख मुगध करंनि ।।
मुह काले तिन निंदका नरके घोर पवंनि ॥ गुरूबाणी"
निंदा भली किसे की नाही
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August 13, 2014
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