ख़ाना नं.7 श़ुकर का घर व इस घर में मंगल आया, मंगल ख़ाना नंबर एक[अपने घर का मालिक] का मालिक ने ख़ाना नंबर 7 श़ुकर [श़ुकर का अपना घर व औरत का घर] के घर आया; मंगल अपने घर ख़ाना नंबर एक से औरत शुकर के घर आया यानि की मंगल घर जवांई बना "मंगल 7वें सब कुछ उम्दा, धन दौलत परिवार ही सब" शुकर स्त्री धन, श़ुकर के दोस्त शणी,मंगल का दोस्त सूरज,सूरज का दोस्त बृहसपत,बृहसपत का चेला केतु- ये सभी ख़ुश हुये मंगल की हां में हा मिलाई.
पर यहा तीन और रह गये चंदर बुध राहु, अब आगे का तमाशा देखो मंगल ठहरा दामाद, दामाद बन धन दौलत परिवार सब हासिल किया, ससुराल में दामाद की कितनी इज्जत होती है ये तो पता ही है, सबसे हासा मखौल किया, चाहे कोई कितना भी गुंडा बदमाश हो ससुराल में बहुत हिसाब किताब से रहना पड़ता है, व घर जवांई घर का दूसरा मालिक भी हुआ - ‡मुतसद्दी बना ★( متصدی यानि अज़ीज, दिल का प्यारा,
मुतसद्दी या मुत्सद्दी ।मुग़लो के ज़माने में मुत्सद्दी एक
सरकारी पद होता था । वज़ीर, दीवान, कानूनगो, एहदी,
सर्राफ़, मुंशी जैसे महत्वपूर्ण पदों जैसा ही एक और पद ।
मुतसद्दी भी दीवान, राजपुरोहितों की तरह दरबारे-खास
में जाने का अधिकारी था । कुल मिलाकर मुग़लकाल में
नौकरशाही की जो अमलदारी पनपी उनमें मुत्सद्दी-
मुसाहब जैसे सरकारी अफ़सरों की काफ़ी तादाद थी ।
मूलतः ये लोग सरकारी खजाने में मालमत्ता लाकर देते थे ।
चुस्त प्रशासन की जिम्मेदारी इन पर थी ताकि भरपूर
राजस्व वसूली हो सके । ज्यादा राजस्व
वसूली यानी बादशाहों, राजाओं की विलासिता के
लिए ज्यादा सरंजाम की गुंजाइश । ज्यादा राजस्व
वसूली यानी रियाया पर ज्यादा बोझ,
ज्यादा अत्याचार । इन दोनों के बीच होता था मुत्सद्दी
वर्ग जिसकी दोनों तरहफ़ चांदी थी । मुत्सद्दी आमतौर पर
हिन्दू कायस्थ, वणिक और ब्राह्मण वर्ग के लोग होते थे । ये
लोग ज्यादा बेहतर ढंग से कर वसूली करते थे । सीधी उंगली से
घी न निकले तो कैसे और कितना टेढ़ा करना है, ये तमाम
तरकीबें ये जानते थे । राज्य के अन्य
पदवीधारी मूलतः दूरदराज़ की जमींदारी देखते थे या फिर
फौज सम्बन्धी इंतजामात देखते थे इसलिए उनकी तुलना में
मुत्सद्दियों-मुसाहबों को राजा के नज़दीक रहने
का मौका मिलता था । #लालकिताब में बहुत ही पुरानी उरदू का इस्तेमाल किया है, आजकल के उरदू में ऐसा चलन कम ही देखने को मिलता है)
जवाई को राजा-बेटा कहा गया है, पर अगर घर जवाई बन जाये राजा तो नही पर वजीर-मंत्री जरूर होता है, वैसे भी खाना नबंर सात वज़ीर का ख़ाना है, सो मंगल ख़ाना नंबर सात में मुतसद्दी यानि छोटा वज़ीर और धर्मात्मा, रोते को हसाने वाला, नेक नाम व इल्म हिसाबी हुआ.
पर जब बुध(बहन) ने घर में आना जाना या रहना शुरू किया तो ये बात शुकर को बहुत बुरी लगी- कहतें है न औरत की औरत दुश्मन; बीवी तो पति के घर ननद(पति की बहन-बुध) को जैसे तैसे झेल लेती है, पर जब बीवी अपने घर-मायके हो तो ननद को कैसे झेले, घर जवांई तो अपनी बीवी के रहमों करम पर आकड़ता पर जब बीवी की आखें टेड़ी हो तो ससुराल जवांई की क्या औकात!
"सबका सबही रद्दी होगा, बुध मिले मंगल से जब"[लालकिताब गुटका 1941]
ईधर अगर बहन को नाराज किया तो बहन-बुध कही पड़ोसी पापी राहू से मिल कर कोई खराबी न कर दे,राहु जब मंगल को देखे मंगल मंदा, मंगल जब भी बुध से पंगा लेगा तो खुद बर्बाद होगा, मंगल बर्बाद का मतलब ख़ाना नंबर एक का ख़राब होना,ख़ाना नंबर एक मंदा हुआ तो ख़ाना नंबर सात में मंदापन आना सुनिश्चित है, या अब मंगल बद मंदा होकर शुकर गाय पर हमला किया, श़ुकर-गृहस्ती बर्बाद, मंगल जब बद होता है तो बर्बादी लेकर आता है॥ सो जातक को खुद मंगल की चीजें बहन को देकर विदा करे ,बुध बहन के पास अगर मंगल की चीजें हो तो राहू अपनी शरारत नही कर सकेगा, शुकर को मनाने के लिये सनीचर का उपाय नया व छोटी दीवार बना कर गिराना मुबारक होगा व बहन को अपने पास न रखना ही खुद के लिये मुबारक है ॥ अगर बुध का मसला हल होने बाद, अगर पापी राहू की नज़र मंगल पर हो तो राहु को माता चंदर की ठोस चीज(चांदी की गोली, कड़ा) की मदद से चुप कराया जा सकता है॥©
इसे कहते है चालाकी, आपने यह जुमला तो सायद सुना ही होगा↩
मय भी पीय़ो होटल में, चंदा भी दो मसजिद में।
ख़ुदा भी ख़ुश रहे, शैतान भी खुवार न हो॥
#Najoomi Daljiet Singh [نجومی دلجیت سنگھ]