" अगर आशिक़ दुनिया हुआ तो फंसे हुये पतंग(शुक्र की पतंग रेखा-आसमानी इन्द्र धनुष शक्ल की रेखा {शुक्र वल्य} एक तरफ गुरू व शणी की उंगली में फसा दुसरी तरफ बुध व सुरज की उंगली में फसा हुया/ जिसे हम हस्त रेखा में शुक्र वल्य कहते हैं) की तरह क़िश्मत का हाल हो। लेकिन अगर सूफ़ी हुआ तो भव सागर से पार हो। वर्ना, एक को क्या रोते, यहाँ तो आवा ही ऊत ही गया।
ख़ाना न:५ पक्का घर गुरू का मालिक सूरज , अब यहाँ शुक्र ;गुरू व सूरज के घर बैठा है। पर अब यहाँ आशिक़ी इतनी दूर है,जितनी लम्बी खजूर है वाली हो गई, क्योंकि गुरु तो ठहरा त्यागी साधु बाबा, अब साधु बाबा का तुम्हारी (टेवे वाला)आशिकी में मदद करना खुद चोले में दाग लगवाने वाली बात है, गुरू एसा हरग़िज न चाहेगा-
सुरज(पिता) तो वैसे ही आशिकी बदचलनी के खिलाफ है और शुक्र का ख़ासम ख़ास दोस्त शणी का तो वैसे ही सूरज से ३६ का आंकड़ा है. शणी सूरज के घर कोई दख़लअन्दाज़ी करेगा नही, अब शुक्र करे तो करे/ तो शुक्र ने सोचा क्यों #अपना हाथ जगननाथ; आपण हथ्थीं आपणा आपे ही काज सवारीए# वाला काम कर लें।
सो शुक्र ने आशिक़ी का रास्ता अख्तियार करते हुये सुरज के घर में सूरज के असूलों से बगावत कर दी(मन मर्जी से शादी कर ली व रंगरेलीय़ां मनाने लगा)-
सुरज के आंखों तले हुई इस चोरी व सीनाजोरी ने सुरज को शर्मिन्दा कर दिया व सुरज(पिता) से ये देखना सहन न हुआ( सूरज ने सोचा था कच्ची उड़ती फिरती मिट्टी(शुक्र) अब मेरे घर आकर आग में तप कर टिक गई, पर जब शुक्र ने आंधी का रूख अपनाया(आशिकी व बगावत करी) सुरज ने सिर नीचे कर लिया(दिन दिहाड़े इश्क़मिजाज़ी,दिन में संभोग सुख को अपने घर देख कर)-आंखे मूंद ली/अस्त हो गया/मंदा हो गया।
अब सूरज मंदा होने का मतलब ख़ाना नम्बर १ (पक्का घर सूरज) गरहों पर बुरा असर पड़ना भी हुआ, इधर गुरू ने भी शुक्र की इस बदचलनी को अपने पक्के घर में होते देख कर आंखे फेर/टेड़ी की तो ख़ाणा न:९ के ग्रहों पर मंदा असर पड़ा मसलन "जो ग्रह पहले नौवें अन्धा काना हो" ख़ाना १-९ के गरह अंधे काने गये। टेवे वाला बेऔलाद तो न होगा पर औलाद (केतु) मददगार न होगी।
शुक्र की मनमानी की वजह से सूरज(पिता)-गुरु( गुरू के रिस्तेदार राहु[ससुराल]मंगल(बड़ा भाई व ताऊ) व केतु (गुरू का चमचा बना रहा)- सब मंदे हुये...इसे कहते है यहाँ एक को क्या रोना सारा आवा ही ऊत गया।
अब यहाँ टेवे वाले(शुक्र ५) को शनी मित्र (कारोबार मंदा न होगा) की मदद मिलती रहेगी पर कहते है न गुरू बिना गत नही शाह(मालिक) बिन पत(इज्जत)नही; आदमी के सब गरह ठीक हो अगर सूरज(सबका मालिक) मंदा हो तो कोई न कोई परेशानी बनी रहती है, सो घर के मालिक पिता(सूरज) को मनाना बहुत जरुरी है।
अब यहाँ सूरज(पिता)को मनाने के चंदर(माता) की मदद निहायत जरूरी है....पर पहले खुद का चाल चलन ठीक करना होगा - इश्क मिज़ाजी छोड़ना होगा।
Additional[ जब शुक्र ने सुरज के घर(ख़ाना न:5) में मन मरजी(आशिक़ी) से शादी किया तो पिता(सूरज) की बेइज्जती( दिन के उजाले किया संभोग तो कटे पर नमक -शुक्र आशिक तो ऐसा करेगा ही)हुई, सुरज का सिर झुका/अस्त मंदा हुआ-सूरज की मर्यादा व गुरु की परम्परा दोनो का हनन हुआ- सुरज गुरू मंदे की वजह से दोनो के घर(ख़ाना न:१व९) बैठे ग्रह भी बरबाद हुये व पक्का घर मंगल(खाना न1)-ख़ाना न:८ मित्र शणी(कारोबार धण) तो ठीक ही रहा पर ख़ाना न:१२ का गुरू+राहु(ससुराल मंदा हुआ) ख़ाना भी जला।
शुक्र की बदचलनी ने कितने घर बर्बाद/आवा ही ऊत गया। पर अब पिता सूरज को मनाने के लिये माता चंदर(ख़ाना न:4) की मदद चाहिये क्योकि बहु/जवांई(बेटा-बेटी का घर बसता को देख कर )पर सबसे ज्यादा मां ही खुश होती है/मां ममता के वस हो कर सारी बातें भूल जाती है। बाप को मनाने के मां(चंदर)-बुध(बहन बुआ मौसी) मदद ही काम आयेगी।]
शुक्र की बदचलनी ने कितने घर बर्बाद/आवा ही ऊत गया। पर अब पिता सूरज को मनाने के लिये माता चंदर(ख़ाना न:4) की मदद चाहिये क्योकि बहु/जवांई(बेटा-बेटी का घर बसता को देख कर )पर सबसे ज्यादा मां ही खुश होती है/मां ममता के वस हो कर सारी बातें भूल जाती है। बाप को मनाने के मां(चंदर)-बुध(बहन बुआ मौसी) मदद ही काम आयेगी।]