ख़ाना न:२ शणी वाले टेवे को नंगे पैर धर्मस्थान जाना क्यों लिखा लाल क़िताब में?

Najoomi Ji
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ख़ाना न:२ पक्का घर गुरू का, शनी(दौलत-अमीरी) गुरू के घर खराबी नही करता पर गुरू (त्यागी व मलंग फ़क़ीर) शनी के घर खराबी करता है।
पर जब शणी २ में आया तो गुरू ने नज़रे टेढ़ी की पर घर का मालिक शुक्र है व शुक्र ठहरा शणी का मित्र , मित्र ने मित्र की मदद की.
पर जब शादी(शुक्र) का वकत आया तो शुक्र ने शणी(किशमत रेखा का मालिक) से मदद मांगी- शणी की मदद के बगैर शादी होगा नही। 
    शुक्र ने शणी की मदद लेकर अपना ऊल्लू सीधा कर लिया, शनी तो गुरू फूटी आंख नही सुहाता पर अब शणी की इस करतूत ने गुूरू को पूरा आग बबूला कर दिया(शणी बेचारा फस गया जैसे कि हनुमान जी झगड़ा तो भगवान श्री राम जी और रावण के बीच था पर अपनी पूँछ जला कर बैठ गये). गुरू ने घर के मालिक शुक्र को कुछ कहने की बजाय(क्य़ोकि शुक्र तो घर का ठहरा/बाहरी को बाहर का रास्ता दिखा दिया)  शणी की जैसी की तैसी करी (खाना न:2 धन/ससुराल के घर से चलता कर दिया).
     अब शणी(कारोबार मंदा हुआ) परेशान/मंदा हुआ और जब शणी मंदा(कारोबार- क़िसमत) हुआ तो शुक्र (संसार-स्त्री-सुख) को परेशानी क्योंकि बगैर शणी(धन-कारोबार) के शुक्र (स्त्री-संसार-भोग) की परेशाणी बढ़ी।
    तो अब जाकर शणी+ शुक्र दोनो की अक्ल ठिकाने आयी पर शणी घर में घुसे तो कैसे घुसे क्य़ोकि गुरू तो शणी को पहले ही देखना नही चाहता था पर अब तो "नीम व ऊपर से करेला चढ़ा"वाली बात हो गयी.
      और इधर शणी के बगैर शुक्र की हालत पतली हो गई। जब शणी ने मित्र शुक्र (संसार) की यह हालत देखी तो दुखी हुआ/ अब मसले का हल यही था कि शणी गुरू से माफी मांग लेवे पर शणी तो ठहरा आकड़खोर(बाप सूरज के आगे नही झुका तो और किसी सामने क्य़ो झुके) पर मित्र शुक्र के लिये शणी ने हंकार छोड़ कर गुरू की शरण में जाना ठीक समझा।
     गुरू तो कृपा का सागर है पर शणी पर कृपा नही करता है सो शणी ने(टेवे वाला) ने शुक्र (मिट्टी) की मदद ली और नंगे पैर मंदिर/गुरुद्वारा/धर्मअस्थाण मे हाज़िरी भरी /गुरू की मान मनौवल करी तो गुरू ने माफ कर दिया और गुरू के पक्के घर में शणी(धन कारोबार) को ठिकाना मिला व शुक्र(स्त्री-संसार-सुख) ने आनन्द लिया॥
उपाय✔★↩
धर्मस्थान नंगे पैर जाओ-43 से 46 लगातार(पति पत्नी दोनो).
दूध/दही का तिलक करें.
मंदिर/गुरूद्वारे मांह की दाल,काले चने,काली मिरच व चन्दन की लकड़ी दाण करें.

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