वक़ते रूख़सत
जब सनीचर की रेखा वाली उंगली यानि मध्यमा के नाखून पर राहु नीले रंग की जाल बना देवे या बदन से शनीचर के दोस्त शुकर की देशी घी की खुस़बू आवे तो समझ लेवे की गुरू समाधि व राहु जम जन्दार दोनो हिल पड़े है, ख़ाना नम्बर एक का सफ़र ख़तम हुआ यानि अब दीवाने परवाने ने सूरज की कदम बढ़ा दिये है ....अगर गुरू का चेला(केतु) ख़ाना नं. ९ या १२ में बुलन्द हो तो १०८ की माला सिद्ध व नसीब-ए-जन्नत- और अगर राहु का धुऑ ही रहा तो पवन गुरू राहु की धुऑ से निकले पर सामने खाली आकाश पाया गर्म(सुरज) हवा(गुरू) के मिलने पर चंदर का पानी मिला यानि आसमान से गिरे ख़जूर पर अटके वाली बात बन गई व ख़ाना नं१ में आकर फिर से १०८ की माला फेरनी सुरू कर दी पर राहु की शरारत क्या पता? १०८ की माला पूरी हो कि ना हो!
पहले गुरू कि पहले चेला - गुरू के कहने से चेला नही होता, चेला के कहने से गुरू होगा -चेला (केतु) के कायम[९ व १२] होने पर ही माला(मनुष्य जनम) सफल होगी॥ वर्ना मुड़ मुड़ खोती(गधी) बोहड़ नीचे आती रहेगी - केतु कायम के लिए यह ज़ुमला याद हमेसा धियाण रहे "ईबादत कर ईबादत कर, करन नाल गल्ल बनदी है; किसे दी अज्ज बनदी है, किसे दी कल बनदी है" वरना माला पूरी न होवेगी-धन्यवाद
वक़्त-ए-रुख़सत(मौत-मुक्ति-आवागमन)
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June 28, 2014