लोग अपने आप को राहु केतु से कम नही समझते-कालसर्प बन कर सभी सात गरहों को अपने पल्ले में बांध लेना चाहते यानि कि सारे गरह उच्च के हो जावे, पर यह नही समझते कि महांबली श्री हनुमान जी खुद मंगलमयी हो कर मंगल को इतना प्रबल किया कि विश्व के दीपक सुरज को ही ग्रास बना लिया[सुरज+मंगल एक हुये मंगल की ताकत बढ़ी]इतना ही नही-सुरज के पुत्र शनी को भी पैरों तले रौंद डाला- अब हुआ क्या-मंगलमयी हो सूरज को वस किया सुरज मंगल दोनो उच्च के बने पर उच्च के बन कर क्या करा, कुल आलम की मिल्कियत दी,सुरज की करामात -सारे काम आगे बढ़ चढ़ के किये, मंगल की करामात- महांबली योद्धा परउपकारी महावीर विक्रम बजरंगी हुये- शनी को तो चूं न करने दिया- अब शनीचर का दोसत शुकर भी चुपचाप हुवा यानि ज़र व जोरू दोनों से पू;रब पच्छिम रहे, बाल ब्रह्मचारी[मंगल उच्च-शुकर से दूरी] व त्यागी[ शनीचर को कब्जे में रक्खा सनीचर हनुमान जी के बने, न्यायी बने -बिभीषण ,सुग्रीव को इंसाफ दिलाया-]दुनिया की खुशियां दी, यानि जो भी किया दुसरों के लिये किया, अपने लिये कुछ भी नही॥
हां मित्रों कान खोल कर सुन लो बहुत उच्च या नीच के गरह खुद के लिये परेशानी ही परेशानी खड़े करते हैं, इसलिये गरह को उच्च और उच्च और थोड़ा और उच्च करने के भूल भूलैया में मत पड़ना, ख़बरदारी रक्खो व परमात्मा की भजन बंदगी और श़ुक्राना करते रहो, वरना चौबे जी चले छब्बे बनने दुबे बन कर आये वाली बात हो जावेगी॥
गरहों को उच्च करना क्या होता है!
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June 28, 2014