मन तु जोत सरूप हैं, अपना मूल पछाण॥

Najoomi Ji
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एक प्रचलित कथा है कि जब श्री कृष्ण
जी कालिया नाग का मर्दण किया-अंहकार
तोड़ दिया तो कालिया नाग श्री कृष्ण
जी के चरणों में गिर पड़ा और हे भगवन! मुझे माफ
कर दें मै नीच आपको पहचान नही पाया॥
श्री कृष्ण जी बाकी दुसरे जीवों को परेशाण
न करने की शर्त पर क्षमा कर दिया, पर
कालिया नाग के नाग के मन में एक प्रश्ण
उत्पन्न हुआ कि मैं सर्प जाति का होने के
कारण ही मेरा स्वभाव ही ऐसा है/मन
हमेसा क्रोधित रहता है सो क्यों न श्री कृष्ण
जी वरदान मांग लूँ कि मेरा पापी मन निर्मल
हो जाये॥
सो कालिया नाग ने श्री कृष्ण जी से
विनती करते हुये कहा जब आप ने मुझ पापी पर
इतनी कृपा की है तो एक और कृपा करें/वर दें
कि "मेरा मन निर्मल हो जाये"॥
श्री कृष्ण जी कालिया नाग को कहने लगे
किसीे के मन को बदलना मेरे वश का नही है,
कहने लगे अगर ऐसा मेरे वश का होता तो मैं अपने
मामाश्री कंस व बाकी दुसरे दुष्टों के मन
को कब का बदल देता व इतनी परेशाणीया न
होती, सो कालिया अगर तुम इस पापी मन
को निर्मल करना चाहते हो तो तुम्हें खुद उस
पारब्रह्म परमात्मा की भजन
बंदगी करनी होगी व इसी से तुम्हारा मन
निर्मल होगा॥
सो मन को निर्मल करने के लिये
परमात्मा की भजन बंदगी इबादत करना बहुत
जरूरी है॥

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